Loan settlement kya ha ?

लोन सेटलमेंट, बैंक और लोन लेने वाले के बीच एक सहमति है.दरअसल बैंक पूरा कर्ज वसूलना चाहता है और कर्जदार पूरा लोन चुकाने की स्थिति में नही होता है.ऐसी स्थिति में दोनो के बीच बात चीत के आधार पर सहमती बनती.इस सहमति को सेटलमेंट कहते हैं.यह मैंने आपको बोलचाल की भाषा बताया है.लेकिन सेटलमेंट में होता यही है.

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Loan – settlement

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इसे और बैंकिंग टर्म के हिसाब से समझाने की कोशिश करते हैं. दरअसल होता क्या है जब आप पर्सनल लोन या किसी भी अन्य प्रकार का लोन लेते है ,तो आपको लोन किश्तों में चुकाना होता है.

आप बैंक या एनबीएफसी से लोन लेने के बाद इसे किश्तों में चुकाने भी लगते हैं.लेकिन कभी कभी आपके सामने ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि आप किश्त नही भर पाते हैं.आप बहुत बुरी तरह से फंस जाते है और एक के बाद एक किश्त चुकाने में नाकाम रहते हैं.

इस तरह यदि आप तीन से अधिक किश्त नही चुकाते हैं तो बैंक या एनबीएफसी आपके लोन को एनपीए(NPA, non performing asset) घोषित कर देता है.एनपीए का मतलब हुआ कि ऐसा लोन जिसके रिकवर होने की उम्मीद कम है.फिर बैंक या एनबीएफसी ऐसे लोन को रिकवर करने के लिए अपने किसी एजेंसी को दे देता है या फिर बैंक का अपना एक टीम होता है ऐसे लोन को रिकवर करता है.ज्यादातर बैंक एनपीए को वसूल करने के लिए किसी ऐजेंसी को देता है.

ऐजेंसी और बैंक के बीच पहले से सांठगांठ होता है.सांठगांठ का मतलब ये हैं कि इनके बीच पहले तय होता है कि ऐजेंसी कर्जदार से लोन वसूल कर कितना प्रतिशत बैंक को देगा और कितना प्रतिशत खुद रखेगा.उदाहरण के तौर पर आप इसे ऐसे समझ सकते है कि आपने बैंक से 150 रुपये लोन लिया है.और आपने 50 रुपये किश्त के रूप में बैंक को लौटा चुके हैं.अब शेष लोन 100 रुपये रह गया जिसका किश्त नही भर पा रहे थे.यानी इसी राशि को एनपीए किया गया.

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अब बैंक इस 100 रुपये को 40,50 ,60 रुपये में ऐजेसी को दे देता है.यह बैंक के उपर निर्भर करता है. जो जैसा बैंक.उसी हिसाब से यह राशि तय करता है.

अब ऐजेंसी इस रुपये में कोशिश करता हैं कि पूरा 100 वसूल लें. क्योंकि जितना अधिक रुपये वसूल करेगा उसकी कमाई उतनी अधिक होगी.

ऐजेंसी आपके उपर पूरा 100 रुपये वसूलने के लिए दबाव बनाएगा. फिर आप दबाव में आकर 50 रुपये में उस ऐजेंसी के साथ इस लोन को सेटल करने के लिए तैयार हो जाते हैं. यही है लोन सेटलमेंट.

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लोन सेटलमेंट के बाद क्या होता है ?

हालात को देखा जाए तो लोन सेटलमेंट बहुत लुभावनी है.लेकिन इसका दुष्परिणाम भी है.इस सेटलमेंट के कारण भविष्य में लोन लेने में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है .

लोन सेटमेंट करने से आपके क्रेडिट स्कोर बुरा असर पड़ता है.भविष्य में आपको किसी भी प्रकार का लोन लेने में बड़ी दिक्कत होगी.आजकल लोन के बारे में पूरा हिसाब किताब रखने वाली बहुत सी ऐजेसी है.जो ये रिकॉर्ड रखती है आपने लोन कब चुकाया और कितना चुकाया.  

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अक्सर देखा गया है कि बैंक रिकॉर्ड में ”सेटल्ड” दर्ज कर देता है.और फिर ये रिपोर्ट सभी वित्तिय जानकारी रखने वाली संस्थानों तक पहुंच जाती है.

किसी का भी बैंकिंग और वित्तीय दस्तावेज़ में “सेटल्ड” रिपोर्ट दर्ज़ होने का मतलब ये होता है. कि आपने लोन की निर्धारित राशि से कम राशि जमा करके लोन को बंद करवा है.हालांकि यह “अनपेड” दर्ज होने से बेहतर है लेकिन यह फाइनेंसियल इन्टीट्यूशन को यह सन्देश भी देती है .ग्राहक भविष्य में फिर ऐसा कर सकता है.इससे आपका क्रेडिट स्कोर खराब होता है.

इसका नुकसान ये होता है कि जब आप किसी भी प्रकार का लोन लेने जाएंगे तो बैंक या एनबीएफसी आपका क्रेडिट स्कोर चेक करेगा और उसमें “सेटल्ड” देखकर आपको लोन देने से मना कर देगा.

पर्सनल लोन हो या होम लोन या क्रेडिट कार्ड का बिल, किसी भी प्रकार का लोन हो इसके सेटलमेंट से बचे.इसे आपके क्रेडिट स्कोर पर खराब असर पड़ता है.करीब 7 साल तक ये आपके खाते में दर्ज़ रहता है.इसीलिए इससे बचना चाहिए.

लोन के बारे में पूरी रिपोर्ट रखने वाली एजेंसी लोन लेने वाले से कोई जानकारी नही लेती है.वो अपने तरीके से इसकी गणना करती है.हर संस्थान अपने अपने तरीके से रिपोर्ट एकत्र करती है लेकिन ये जानकारी सबके पास होती है कि आपका “सेटल्ड ” हुआ है.ऐसे में नए लोन लेने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.

क्रेडिट स्कोर कैसे सुधारे ?

यदि  किसी भी वजह से ग्राहक अपने लोन को लौटाने में असर्थ होते है और उन्हें लोन सेटलमेंट का सहारा लेना पड़ता है तो क्रेडिट खाते पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसे दूर करने का केवल एक ही उपाय है.और वो ये हैं कि आप  फिर से लोन  लीजिए.आप काफी प्रयास करेंगे तो लोन मिल जाएगा.

यदि बैंक से नही मिलता है तो एनबीएफसी(NBFC) आपको लोन प्रदान कर देगी.लेकिन इस स्थिति में लोन का ब्याज दर बहुत अधिक होगा.वैसे भी एनबीएफसी(NBFC) ब्याज दर बैंको से अधिक होता है.लेकिन एनबीएफसी(NBFC) लोन की शर्तों पर समझौता भी कर लेते हैं.लेकिन इस बार आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप लोन की किश्त समय पर भुगतान करे और डिफॉल्टर ना बने.

लोन लेने के अतिरिक्त एक और उपाय है और ये हैं क्रेडिट कार्ड. क्रेडिट कार्ड द्वारा भुगतान करने से आपका क्रेडिट रिकॉर्ड में सुधार होगा और स्कोर को हुई छति की भरपाई होगी. कोशिश ये भी होनी चाहिए की कार्ड का बिल निर्धारित समय से पूर्व जमा हो, और किसी भी प्रकार की देरी न हो.

निष्कर्ष: हमे कोशिश करना चाहिए कि लोन सेटलमेंट ना करना पड़े.हमे इधर उधर यानी किसी जान पहचान या रिश्तेदार से पैसे लेकर लोन का निपटान करें.लेकिन सेटलमेंट से बचें।

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